कलेक्टर कर रहे मजदूरी, खेत जोत रहे जेलदार
गांव लहचौड़ा ,खेकड़ा (बागपत)
'कलेक्टर' मजदूरी करके गुजर-बसर कर रहे हैं तो 'डीएम साहब' अभी नौवीं
क्लास में हैं। 'जेलदार' को खेती से फुरसत नहीं तो 'गड़बड़' विकास कार्य करा
रहे हैं। चौंकिए मत, इन लोगों का ये पेशा नहीं, बल्कि नाम या उपनाम है।
गांव लहचौड़ा ऐसे नामों का गढ़ है। किसी को बचपन में यह नाम मिला तो किसी का
नामकरण प्यार या मजाक में हो गया। एक बार शुरू हुआ यह सिलसिला आज तक जारी
है।
विकास में लगे 'गड़बड़'
इस गांव के एक व्यक्ति का नाम सत्यप्रकाश है, लेकिन लोग उन्हें 'गड़बड़'
पुकारते हैं। हालांकि, जीडीए में कार्यरत सत्यप्रकाश गड़बड़ी से कोसों दूर
हैं। 42 वर्षीय एक व्यक्ति का नाम कलेक्टर है, लेकिन नाम के उलट वह मजदूरी
करके परिवार का खर्च चलाते हैं।
पढ़ाई कर रहे 'डीएम' साहब
विनोद के 15 वर्षीय पुत्र का असल नाम तो कुछ और है, लेकिन लोग उसे डीएम कहते हैं। डीएम साहब अभी नौवीं कक्षा में हैं।
जेलदार-हवलदार दोनों भाई
गांव निवासी हरि सिंह के एक पुत्र का नाम जेलदार तो दूसरे का हवलदार है। जेलदार खेती करते हैं और हवलदार नौकरी।
बिन पेशे के 'पटवारी'
35 वर्षीय सेवानंद नौकरी करते हैं, लेकिन लोग उन्हें मूल नाम के बजाय पटवारी पुकारते हैं।
'छुटकन' हुए लंबे, छोटे रह गए 'बड़कन'
शर्मानंद के पुत्र छुटकन की उम्र 25 साल है, लेकिन लंबाई नाम के विपरीत 5
फुट 5 इंच है। इसके उलट, एक युवक का नाम बड़कन है, लेकिन उनकी लंबाई नाम के
अनुरूप नहीं।
पिता झंडा, बेटा पेठा
'झंडा' यानी जय भगवान
अब इस दुनिया में नहीं हैं। बताते हैं कि वह गांव के मुद्दों को झंडे की
तरह उठाते थे। उनके तीन बेटे हैं। बड़े बेटे 'भगत जी' का असल नाम श्रीकृष्ण
है। उनसे छोटे नरेश हैं, लेकिन लोग उन्हें 'घोंटू' कहते हैं। तीसरे पुत्र
का असल नाम महेश है, लेकिन प्यार से उन्हें सब 'पेठा' कहते हैं।
पढ़े नहीं, पर नाम मास्टर
40 वर्षीय शकील को लोग 'मास्टर' कहते हैं, लेकिन वह पढ़े-लिखे नहीं हैं। मजाक में पड़ा यह नाम अब तक चल रहा है।
गुस्से वाले हैं 'आदाब'
एक व्यक्ति का नाम आदाब है। गांव वाले बताते हैं वह हमेशा गुस्से में रहते हैं।
इन्होंने कहा..
गांवों में नामों को बदलने की परंपरा पुरानी है। बाद में यही नाम उनकी पहचान बन जाते हैं।
हरि मोहन, ग्राम प्रधान
उपनाम का वैसे तो असल नाम से कोई संबंध नहीं है। कई बार लोग अपने बच्चों
का नाम प्यार वश रख लेते थे। बाद में दूसरा नाम रखा जाता था।
पं. प्रवीन शर्मा, लहचौड़ा
इस गांव के एक व्यक्ति का नाम सत्यप्रकाश है, लेकिन लोग उन्हें 'गड़बड़' पुकारते हैं। हालांकि, जीडीए में कार्यरत सत्यप्रकाश गड़बड़ी से कोसों दूर हैं। 42 वर्षीय एक व्यक्ति का नाम कलेक्टर है, लेकिन नाम के उलट वह मजदूरी करके परिवार का खर्च चलाते हैं।
पढ़ाई कर रहे 'डीएम' साहब
विनोद के 15 वर्षीय पुत्र का असल नाम तो कुछ और है, लेकिन लोग उसे डीएम कहते हैं। डीएम साहब अभी नौवीं कक्षा में हैं।
जेलदार-हवलदार दोनों भाई
गांव निवासी हरि सिंह के एक पुत्र का नाम जेलदार तो दूसरे का हवलदार है। जेलदार खेती करते हैं और हवलदार नौकरी।
बिन पेशे के 'पटवारी'
35 वर्षीय सेवानंद नौकरी करते हैं, लेकिन लोग उन्हें मूल नाम के बजाय पटवारी पुकारते हैं।
'छुटकन' हुए लंबे, छोटे रह गए 'बड़कन'
शर्मानंद के पुत्र छुटकन की उम्र 25 साल है, लेकिन लंबाई नाम के विपरीत 5 फुट 5 इंच है। इसके उलट, एक युवक का नाम बड़कन है, लेकिन उनकी लंबाई नाम के अनुरूप नहीं।
पिता झंडा, बेटा पेठा
'झंडा' यानी जय भगवान अब इस दुनिया में नहीं हैं। बताते हैं कि वह गांव के मुद्दों को झंडे की तरह उठाते थे। उनके तीन बेटे हैं। बड़े बेटे 'भगत जी' का असल नाम श्रीकृष्ण है। उनसे छोटे नरेश हैं, लेकिन लोग उन्हें 'घोंटू' कहते हैं। तीसरे पुत्र का असल नाम महेश है, लेकिन प्यार से उन्हें सब 'पेठा' कहते हैं।
पढ़े नहीं, पर नाम मास्टर
40 वर्षीय शकील को लोग 'मास्टर' कहते हैं, लेकिन वह पढ़े-लिखे नहीं हैं। मजाक में पड़ा यह नाम अब तक चल रहा है।
गुस्से वाले हैं 'आदाब'
एक व्यक्ति का नाम आदाब है। गांव वाले बताते हैं वह हमेशा गुस्से में रहते हैं।
इन्होंने कहा..
गांवों में नामों को बदलने की परंपरा पुरानी है। बाद में यही नाम उनकी पहचान बन जाते हैं।
हरि मोहन, ग्राम प्रधान
उपनाम का वैसे तो असल नाम से कोई संबंध नहीं है। कई बार लोग अपने बच्चों का नाम प्यार वश रख लेते थे। बाद में दूसरा नाम रखा जाता था।
पं. प्रवीन शर्मा, लहचौड़ा
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