हर
सुबह धरती पर एक अरब लोगों को ये नहीं मालूम होता की आज उनका पेट भरगा या
भूखे ही सो जायेंगे। आज अखबार में यह भुखमरी के दो छोटे हल पढ़े:
1.
कैमरून में 'आशा का भण्डार' स्कीम है जहाँ अतिरिक्त खाद्यान भंडारों में
सुरक्षित रखा जाता है। ज़रूरत पड़ने पर किसान वही खाद्यान मुनाफे में सरकार
को बेचते हैं। यानी किसान को भी फायदा और ज़रूरत मंदों को भी। दो सालों में
500 गाँव इस से आत्मनिर्भर हो चुके हैं।
2. ब्राज़ील में भोजन का एक
तिहाई भाग उन किसानो से लेते है जिन्हें अब तक बिचोलिये आगे नहीं आने देते
थे। अब छोटे किसान भी अपना रोज़गार निर्माण करने लगा और उनकी हालत सुधर रही
है।
अब समय आ गया है की सरकार का मुंह ताकना बंद करें, हल ढूंढे और लागू करें। हमारा किसान है ...हमारा देश है।
याद रखें की जब तक अन्न दाता भूखा रहेगा , किसानो की हालत में सुधार नहीं
आएगा , जब तक गाँव छोड़ कर रोज़ी-रोटी के लिए शहर भागना पड़ेगा आम आदमी को ,
तब जक देश का विकास नहीं हो सकता .
जय जवान, जय किसान। जय हिन्द
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