Saturday 10 November 2012

" जाट राष्ट्र " - राष्ट्र में एक राष्ट्र !
-पूर्व कमांडेंट हवा सिंह सांगवान

किसी भी राष्ट्र के निर्माण के लिए पहली आवश्यकता ज़मीन हैं | उस ज़मीन की उर्वरकता हो और वहां रहने के लिए जनता हो जो उस ज़मीन की सुरक्षा करने में सक्षम हो | उसके बाद एक सुद्रढ़ राष्ट्र के लिए एक विधान , एक प्रधान और एक निसान हो जिसकी अपनी सार्वभौमिकता हो |
उतरी हिन्दुस्तान में इसी प्रकार एक जाट राष्ट्र हैं जिसकी सार्व-भौमिकता हिन्दुस्तान के पास हैं | इतिहासकार कालिका रंजन -कानूनगो ने लिखा हैं " जाट एक ऐसी जाति हैं जो इतनी अधिक व्यापक और संख्या की दृष्टि से इतनी अधिक हैं कि उसे एक राष्ट्र कि संज्ञा प्रधान कि जा सकती हैं " | इस तथ्य को ओर भी स्पष्ट करते हुए इतिहासकार उपेन्द्र नाथ शर्मा लिखते हैं - " जाट जाति करोड़ो कि संख्या में प्रगतिशील उत्पादक और राष्ट्र-रक्षक सैनिक रूप में विशाल भूखंड पर बसी हुई हैं | इनकी उत्पादक भूमि स्वयं एक विशाल राष्ट्र का प्रतीक हैं " |

आठ प्रदेशो - हरित प्रदेश , दिल्ली , पंजाब , हरियाणा , मरू प्रदेश ( राजस्थान के 12 जिले) , उतरांचल , हिमाचल व जम्मू कश्मीर के तराई क्षेत्र ( पकिस्तान का जाट बाहुल्य पंजाब को छोड़ कर ) को मिलाकर जाट राष्ट्र बनता हैं जिसकी जनसँख्या लगभग 7 - 9 करोड़ हैं जो हिन्दुस्तान के लगभग 85 जिलों , 35 हजार कस्बों , गाँव व ढाणियों में बसता हैं | अपनी सामाजिक पहचान के लिए लगभग 4830 गौत्रों का इस्तेमाल करता हैं हिन्दुस्तान के लगभग 65 चुनावी संसदीय क्षेत्रों में जाट निर्णायक स्थिति में हैं , लेकिन जागरूकता की कमी के कारण हिन्दुस्तान की संसद में 20 से 30 सांसद ही भेज पाते हैं | वर्तमान में (2010 ) मात्र 23 सांसद हैं | जाट राष्ट्र एक कृषि प्रधान राष्ट्र हैं जिसकी 90 प्रतिशत जनता खेती पर निर्भर हैं | जाट-राष्ट्र का क्षेत्रफल संसार के लगभग 102 देशों से बड़ा और इसकी जनसँख्या लगभग 170 देशो से अधिक हैं | इस राष्ट्र में मुख्य रूप से हिन्दू , सिख और मुस्लिम जाट हैं , कुछ इसाई , जैन और बौद्ध भी इसमें शामिल हैं | (मिजोरम राज्य में ईसाईयों का एक वरिष्ठ पास्टर जाट हैं तो जैन धर्म का एक वरिष्ठ मुनि जाट हैं | ) उतरी हिन्दुस्तान की सभी बड़ी नदियां , नहरे , रेल लाइन , बिजली लाइन व राष्ट्रिय राजमार्ग आदि जाट राष्ट्र के क्षेत्र से गुजरते हैं तथा अनेकों बड़े उपकर्म भी लगे हैं | अंग्रेजों ने नई दिल्ली जाटों की मालचा खाप की ज़मीन पर बसाई जिस पर राष्ट्रपति भवन , संसद भवन व इंडिया गेट आदि जाटों की रायसेना गाँव की ज़मीन पर खड़े हैं | जहाँ इंडिया गेट खड़ा हैं वहा कभी रायसीना गाँव का शमशान घाट था , जहां संसद भवन और सर्वोच्च न्यायालय बना हैं वहा जाटों का जों और बाजरे का रकबा था | जहाँ आज हयात होटल और आर.के पुरम बसा हैं वहा कल तक मुनिरका व मोहमदपुर गाँव के जाटों का चने का रकबा होता था (कृप्या दिल्ली कि 1903 कि खतुनी देखे ) | हम कैसे भूल सकते हैं अंग्रेजो ने नई दिल्ली बसाने के लिए हमारी मालचा खाप के 14 जाटों के गाँव (एक सैनियों का गाँव था ) को सन 1911 में दिवाली कि उस शाम को बेघर करके रातो रात हम को दिल्ली छोड़ने के लिए कहा था | हम कहा कहा बिखर के गए और कहा बसे , क्या आज तक किसी सरकारी या गैर सरकारी संस्था ने इसका शौध किया ? जबकि आज तक लोगो ने हमारी ज़मीन पर एक से एक बढ़ कर पांच सितारा होटल , कॉलेज ,अनेको व्यापारिक संस्थाए बना डाली लेकिन हम आज भी खाली हाथ सड़क पर भी नहीं हैं | जब दुसरे लोग अपने सकड़ों साल का पुराना इतिहास दोहरा रहे हैं तो हम अपना कल का इतिहास कैसे भूल जायेंगे ? हम भविष्य में भारत का पाखंडी इतिहास पढने पर मजबूर नहीं हैं , हमारे इतिहास को तहस नहस कर दिया हम यह सभी सहन करते रहे भविष्य में यह सहन नहीं होगा | इंसान के जीवित रहने के लिए तीन चीजे परम आवश्यक हैं - हवा , पानी और अनाज जिसमे , हवा - पानी प्रकृति की देन हैं लेकिन हिन्दुस्तान के केन्द्रीय खाद्द भण्डार में जाट राष्ट्र का लगभग 70 -80 प्रतिशत योगदान हैं | हिन्दुस्तान की सुरक्षा में किसी भी एक जाति से अधिक योगदान जाट राष्ट्र का हैं | कारगिल में जाटों की शहीदी 50 प्रतिशत से भी अधिक थी | हिन्दुस्तान का गौरव बढाने में जाट राष्ट्र का भारी योगदान हैं अभी हाल के कॉमनवेल्थ खेलों में (2010 ) 41 जटपुत्र / जटपुत्री ने 44 मैडल हिन्दुस्तान को देकर लगभग 44 प्रतिशत मैडलों पर अपना अधिकार जमाकर हिन्दुस्तान का गौरव बढ़ाया और इस प्रकार जाट राष्ट्र हिन्दुस्तान की सात हजार जातियों पर भारी पड़ा | यदि जाट राष्ट्र अलग से होता तो इन खेलों में इसका स्थान पदक तालिका में चौथा होता | इसलिए हिन्दुस्तान की शान जाट हैं और इस शान को बनाये रखने की जिम्मेवारी हिन्दुस्तान सरकार की हैं ( कनाडा के एक जाट ने तथा पकिस्तान के तीन जाटों ने भी मैडल जीते हैं )

जब 1932 में प० मदन मोहन मालवीय ने दिल्ली के बिरला मंदिर की नीवं धौलपुर जाट नरेश उदयभानु सिंह के कर-कमलों द्वारा रखवाई तो उन्होंने कहा " जाट जाति हमारे राष्ट्र की रीढ़ हैं , भारत माता को इस वीर जाति से बड़ी आशाए हैं | भारत का भविष्य जाट जाति पर निर्भर हैं " | हिन्दुस्तान आजाद होने पर सरदार पटेल के आह्वान पर जाटों की 29 बड़ी व छोटी रियासतों ने ख़ुशी-ख़ुशी से भारत संघ में विलय किया ( हिन्दू जाट 10 , सिख जाट 18 , मुस्लिम जाट 1 - 29 ) जिसमे सबसे पहले विलय होने वाली जाटों की बड़ी रियासत भरतपुर और पटियाला सम्मिलित थी | लेकिन इसके बाद हिन्दुस्तान की सरकार ने षड्यंत्रों के तहत प० मालवीय जी की बात को ध्यान में रखते हुए इसके विपरित जाट जाति की रीढ़ तोड़ने के लिए नितियां बनाई ताकि भविष्य में हिन्दुस्तान की जाट जाति पर निर्भरता समाप्त हो जाए | इसी क्रम में अंग्रेजों के द्वारा बनाये हुए सन 1894 के कानून के तहत जिस प्रकार नई दिल्ली बसाई उसी कर्म को जारी रखते हुए केवल सन 1990 के बाद 21 लाख हैक्टेयर भूमि केंद्र सरकार व राज्य सकारों ने अधिग्रहण की जिसमे सबसे अधिक भूमि जाट राष्ट्र की हैं | अर्थात जाट-राष्ट्र की भूमि का हड़पना उसी अंग्रेजों के कानून के तहत आज तक जारी हैं | सन 1947 के बाद गेहूं व अन्य खाद्य अनाजों के भाव औसतन 36 गुणा बढे हैं , जबकि तेल , गैस , लोहा , सीमेंट व सोना आदि के भाव 150 गुणा से भी अधिक बढे हैं | अभी हाल का उदाहरण देखिये केंद्र ने सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता सन 2010 में 5 जमा 10 -15 प्रतिशत बढ़ाया , लेकिन गेहूं का भाव 20 रूपये बढाया जबकि 1100 रूपये के भाव पर 15 प्रतिशत की दर से 165 रूपये बढ़ाना चाहिए था , क्योंकि महंगाई तो देश के सभी नागरिकों के लिए बढती हैं , केवल कर्मचारियों के लिए नहीं और न ही किसान की कोई अलग से बढती हैं | जाट राष्ट्र की रीढ़ तोड़ने का यह कर्म सन 1947 से जारी हैं |
खाड़ी देशों में जहाँ भी किसान के खेत से प्राकृतिक गैस / तेल निकलता हैं वे मालामाल हैं जबकि उनको कोई परिश्रम नहीं करना पड़ता | इसी प्रकार हिन्दुस्तान के मेघालय राज्य में जवाई के पहाड़ी क्षेत्र में जिस भी किसान के खेत से कोयला निकलता हैं , वह भी घर बैठकर रोयल्टी से आराम की जिन्दगी जीता हैं | लेकिन जाट राष्ट्र का किसान बारह महीने खून पसीना बहाकर भी कर्जवान हैं और आत्म हत्या कर रहा हैं | क्या गैस , तेल , कोयला आदि खाद्य अनाज से इन्सान के जीने के लिए अधिक आवशयक हैं ?
जाट राष्ट्र की रीढ़ तोड़ने का षड्यंत्र यही समाप्त नहीं होता , इस राष्ट्र पर चारों तरफ से हमले बोले जाते रहे हैं | उदाहरण के लिए संस्कृति , खाप व गौत्र आदि की प्रथाओं पर और उसके लिए यह प्रचार किया गया कि ये प्रथाए प्राचीन हैं , 21वी सदी से मेल नहीं खाती | लेकिन हिन्दुस्तान की सरकार से यह पूछने वाला कोई नहीं कि क्या कुम्भ के मेले अमरनाथ की यात्रा , गंगा स्नान और उसमे गोते लगाते नंग-धडंग बाबे आदि-2 प्रथाए क्या प्राचीन नहीं हैं जिनपर सरकारे करोड़ो रूपये खर्च कर रही हैं ? और क्या ये इस सदी से कहीं भी मेल खाती हैं ? अब हिन्दुस्तान के लोग कहेंगे कि ये आस्था के प्रतीक हैं तो क्या जाटों की परम्पराए और उनकी संस्कृति उनकी आस्था की प्रतीक नहीं हैं ? हिन्दुस्तान जिन्हें आस्था कह रहा हैं , जाट राष्ट्र इसे अंध-विश्वास कह रहा हैं , फैसला हिन्दुस्तान की सरकार पर हैं |

इसी प्रकार सन 1947 के बाद जाटों की रीढ़ तोड़ने के षड्यंत्र जारी हैं , चाहे दिल्ली से एक लाख मुसलमान जाने पर उनके बदले चार लाख अस्सी हजार पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थी बसाने की बात हो या तिब्बती , बंगलादेशी व जे-जे कालोनियां दिल्ली में खड़ी करने की बात हो | हिन्दुस्तान आजाद होने के बाद भी कोई भी ऐसा कानून नहीं बना जो जाटों की रीढ़ न तोड़ता हो , चाहे ज़मीन सरप्लस का कानून हो | हिन्दू-विवाह -1955 हो , ज़मीन व अनाज की कीमत की बात हो या केंद्र में सरकारी नोकरियों का कानून हो या आरक्षण के मामले में जाट कौम के साथ भेदभाव की बात हो या फिर जाट इतिहास को विकृत करने का मामला हो | जाट राष्ट्र 63 साल से देश की आज़ादी में गुलामी को ढ़ो रहा हैं |

कुछ स्वार्थी तत्व जाट कौम को अलग-थलग करने का प्रयास कर रहे हैं | लेकिन वे भूल जाते हैं कि वे स्वयं जाटों को उसकी ताक़त और उसके अधिकारों की याद दिला रहे हैं | जिसके लिए जाट राष्ट्र उनका आभारी हैं | इन्ही लोगो ने आज तक भ्रष्टाचारी समाज और मिलावट करने वाले समाज का भांडा-फोड़ क्यों नहीं किया ? कमेरा वर्ग कमा रहा हैं तो लुटेरा वर्ग देश को लुट रहा हैं | अब जलन में ये लोग हरियाणा में गैर जाट बैटन निकाल रहे हैं और स्वयं ही झूठा प्रचार कर रहे हैं कि हरियाणा में मात्र 19 प्रतिशत जाट हैं , अर्थात गैर जाटों की संख्या 81 प्रतिशत बतलाकर अप्रत्यक्ष रूप से गैर जाटों का अपमान कर रहे हैं कि उनका जाटों से कम योगदान हैं | इनको पता होना चाहिए कि हरियाणा से बाहर हर किसी को जाट समझा जाता हैं | उदहारण के लिए जनरल वि० के० सिंह आर्मी चीफ बनने पर अंग्रेजी के ट्रिब्यून समाचार पत्र ने उनको जाट लिखा हैं तो कपिल देव को हरियाणा की तरफ से खेलने पर बार-2 जाट लिखा व कहा जाता हैं | आलम यह हैं कि हरियाणा से कोई कुत्ता बाहर चला जाए तो उसे जाट का कुत्ता समझा जाता हैं , इंसान की बात तो छोडो |
जाट समाज को हमेशा के लिए भोला समझ कर हमारे अधिकारों का कोई हनन न करे | आरक्षण हमारा सैवधानिक और कानूनी अधिकार हैं जो बगैर किसी देरी के तुरंत दे दिया जाए इसी में देश और समाज कि भलाई हैं | याद रहे हम जाटों में हिन्दू , मुस्लिम , सिख ,जैन , बौद्ध , इसाई आदि में कोई फर्क नहीं हैं जो ऐसा समझता हैं वो जाट नहीं जाट का दुश्मन हैं
जय जाट !

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