Saturday 10 November 2012

बरेली के जाट म्यूजियम में रखी एक-एक धरोहर गौरवमयी इतिहास समेटे है, जिन्हें देखकर सिर गर्व से तन जाता है और सीना चौड़ा। यहां रेजीमेंट की स्थापना से लेकर अब तक की अनेक बेशकीमती धरोहर सहेज कर रखी गई हैं, जिनमें दुश्मनों के छक्के छुड़ा कर छीनी चीजें भी शामिल हैं। जापानियों से छीनी तोप, बीएमडब्ल्यू मशीन गन, तलवारें और राइफलें भी यहां जाट वीरों का गौरव बढ़ा रही हैं। तो पाकिस्तानी बंदूके शौर्य गाथा बयान कर रही हैं। दुश्मनों से छीने गए झंडे भी यहां पर सुरक्षित हैं। १८०३ से लेकर के १९५५ के बीच बदले गए रेजिमेंटल बैज और समय के साथ बदली गई यूनिफार्म भी अपने इतिहास से लोगों को जोड़ती है। साथ ही अशोक और महावीर चक्र के साथ तमाम मेडल रेजीमेंट के जवानों की शौर्य गाथाओं के गवाही देते हैं।

कैस्टर की पलटन से जाट रेजीमेंट तक
जाट रेजीमेंट का इतिहास १७८५ से आरंभ होता है। हैनरी डी कोस्ट्रो ने गोदामों की सुरक्षा
के लिए इसका गठन किया तब इसे कैस्टर की पलटन के नाम से जाना गया। १८५९ में इसे नियमित पैदल सेना में देकर अलीपुर रेजीमेंट का नाम दिया गया। १८६१ में इसका नाम बदल कर
२२ रेजीमेंट बंगाल नेटिव इन्फेंट्री नाम दिया गया। इसी वर्ष इसका नाम बदल कर २२ रेजीमेंट बंगाल नेटिव इन्फेंट्री किया गया। १८८५ में पूरी भारतीय सेना से नेटिव शब्द हटा दिया गया। १९०२ में इस रेजीमेंट को १७ रायल बंगाल रेजीमेंट के साथ मुसलमान रेजीमेंट में बदल दिया गया और इसे १८ मुसलमान राजपूत पलटन नाम दिया गया १९२२ में भारतीय सेना का पुनर्गठन किया गया इसमें इसको ९वीं जाट रेजीमेंट में शामिल किया गया और चौथी बटालियन ९वीं जाट रेजीमेंट नाम दिया गया। २४ अगस्त १९२३ में सेना मुख्यालय के आदेश पर इसे भंग कर दिया गया और १८वीं इन्फेंट्री बटालियन के इतिहास को बरकरार रखने के लिए १०वीं ट्रेनिंग बटालियन ९ जाट रेजीमेंट में सम्मिलित कर दिया गया। दूसरे महायुद्ध के दौरान इसका नाम फिर बदला गया और नाम दिया गया जाट रेजीमेंट सेंटर।

जंग मराठों से लेकर कारगिल तक
ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन और आजाद भारत में इस रेजीमेंट की तरफ से कई लड़ाइयां लड़ीं गईं जिसमें जाटों ने वीरता के नए मुकाम हासिल किए। १८०३ में इसके जवानों ने मराठा और पिंडारियों से लोहा लिया तो १८२३ में बर्मा की फौज से आसाम में टक्कर ली। १८३९ में अंग्रेजों ने इस बटालियन के जवानों को काबुल विजय के लिए भेजा। जहां इन्होंने कुछ घंटों की लड़ाई के बाद ही गजनी के किले पर कब्जा कर लिया। इस फतह के बाद लेफ्टिनेंट स्टाकर, कमाडिंग अफसर और मेजर टैंकाक को आर्डर आफ दुर्रानी अंबायर पदक दिया गया और पलटन के सभी जवानों को ब्रिटिश बार मेटल मिला। १८४५ में सिखों के खिलाफ फिरोजशाह की लड़ाई में हिस्सा लिया। चीन से १८५८ और १९०० में युद्ध शामिल है। रेजीमेंट के जवान ने प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बगदाद, फ्रांस, बर्मा, मलाया में दुश्मन सेना के छक्के छुड़ाए। आजादी के बाद जाट जवानों ने पाकिस्तान और चीन की फौज से लोहा लिया और कारगिल में भी दुश्मनों के दांत खट्टे किए।

विक्टोरिया क्रास से अशोक चक्र तक कब्जा
जाट रेजीमेंट के जवानों ने अपनी वीरता के बल पर सैकड़ों पदक अपने नाम किए हैं। जिसमें विक्टोरिया क्रास और अशोक चक्र से लेकर सेना पदक तक शामिल हैं। रेजीमेंट को एक विक्टोरिया पदक, २ अशोक चक्र, 8 महावीर चक्र, ३९ वीर चक्र, १२ कीर्ति चक्र, ४२ शौर्य चक्र और २४७ सेना पदक हासिल हैं। इसके साथ ही ९७ मेंशन इन डिस्पैचेज मेडल भी हासिल हैं।

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