Saturday 10 November 2012

चौधरी चरण सिंह ...... सिद्धान्तवादी व्यक्ति !

चौधरी चरण सिंह ...... सिद्धान्तवादी व्यक्ति !

पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह को किसानों के अभूतपूर्व विकास के लिए याद किया जाता है| चौधरी चरण सिंह की नीति किसानों व गरीबों को ऊपर उठाने की थी| उन्होंने हमेशा यह साबित करने की कोशिश की कि बगैर किसानों को खुशहाल किए देश व प्रदेश का विकास नहीं हो सकता| चौधरी चरण सिंह ने किसानों की खुशहाली के लिए खेती पर बल दिया था| किसानों को उपज का उचित दाम मिल सके इसके लिए भी वह गंभीर थे| उनका कहना था कि भारत का संपूर्ण विकास तभी होगा जब किसान, मजदूर, गरीब सभी खुशहाल होंगे|

चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर, 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले में हुआ था| इनके परिवार में शैक्षणिक वातावरण था| 1923 में 21 वर्ष की आयु में इन्होंने विज्ञान विषय में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर, कला स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की| फिर विधि की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने गाज़ियाबाद में वक़ालत करना आरम्भ कर दिया|

1929 में पूर्ण स्वराज्य उद्घोष से प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया|1930 में महात्मा गाँधी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत नमक कानून तोडने का आह्वान किया गया| आजादी के दीवाने चरण सिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिण्डन नदी पर नमक बनाया| परिणामस्वरूप चरण सिंह को 6 माह की सजा हुई| 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह गिरफतार हुए| मेरठ कमिश्नरी में युवक चरण सिंह ने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर ब्रितानिया हुकूमत को बार-बार चुनौती दी। मेरठ प्रशासन ने चरण सिंह को देखते ही गोली मारने का आदेश दे रखा था। जेल में ही चौधरी चरण सिंह की लिखित पुस्तक "शिष्टाचार", भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचार के नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज है।

आजादी के बाद चौधरी चरण सिंह पूर्णत: किसानों के लिए लड़ने लगे| चरण सिंह की मेहनत के कारण ही "जमींदारी उन्मूलन विधेयक" साल 1952 में पारित हो सका| इस एक विधेयक ने सदियों से खेतों में खून पसीना बहाने वाले किसानों को जीने का मौका दिया| दृढ़ इच्छा शक्ति के धनी चौधरीचरण सिंह ने ‘लेखपाल‘ पद का सृजन कर नई भर्ती करके किसानों को पटवारी आतंक से मुक्ति तो दिलाई ही, साथ ही लेखपाल भर्ती में 18 प्रतिशत स्थान हरिजनों के लिए आरक्षित किया था|

1977 में चुनाव के बाद जब केन्द्र में जनता पार्टी सत्ता में आई तो मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और चरण सिंह को देश का गृह मंत्री बनाया गया| इसी के बाद मोरारजी देसाई और चरण सिंह के मतभेद खुलकर सामने आए| इंदिरा गांधी द्वारा चौधरी चरण सिंह को समर्थन के कारण मोरारजी देसाई की सरकार का पतन हुआ|

चौधरी चरण सिंह स्वतंत्र भारत के पांचवें प्रधानमंत्री के रूप में 28 जुलाई, 1979 समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री बनने में सफल हुए| यह तो स्पष्ट था कि, इंदिरा गांधी का समर्थन उनको न प्राप्त होता तो वह किसी भी स्थिति में प्रधानमंत्री नहीं बनते| उसके अनुसार "इंदिरा गांधी ने समर्थन के लिए शर्त लगाई कि जनता पार्टी सरकार ने जो मुक़दमें इंदिरा के विरुध क़ायम किए हैं, उन्हें वापस ले लिया जाए| लेकिन चौधरी साहब तैयार नहीं हुए| लिहाज़ा इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त, 1979 को बिना बताए समर्थन वापस लिए जाने की घोषणा कर दी| अब यह प्रश्न नहीं था कि चौधरी साहब किसी भी प्रकार से विश्वास मत प्राप्त कर लेंगे| वह जानते थे कि विश्वास मत प्राप्त करना असम्भव था| इस प्रकार की गलत सौदेबाज़ी करने से तो उनको प्रधानमंत्री की कुर्सी को छोड़ना ही भला लगा| वह जानते थे कि उन्होंने जिस ईमानदार नेता और सिद्धान्तवादी व्यक्ति की छवि बना रखी है| वह सदैव के लिए खण्डित हो जाएगी| अत: संसद का एक बार भी सामना किए बिना चौधरी चरण सिंह ने प्रधानमंत्री पद का त्याग कर दिया|

चौधरी चरण सिंह राजनीति में स्वच्छ छवि रखने वाले इंसान थे| चारित्रिक रूप से उन्होंने कभी कोई ग़लती नहीं की| उनमें देश के प्रति वफ़ादारी का भाव था| वह कृषकों के सच्चे शुभचिन्तक थे| इतिहास में इनका नाम प्रधानमंत्री से ज़्यादा एक किसान नेता के रूप में जाना जाता है|

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