Saturday 10 November 2012

चौधरी एक पंडित के पास पहुंचा - "बूझा कढ़वावण" । पंडित ने उसका हाथ देखकर एक पोथी निकाली और एक कागज पर कुछ आडी-टेढी लकीर निकाल कर बोला - "तेरै तै शनीचर चढ़ रहया सै" ।

जाट - पंडित जी, इसका कोई उपाय कर ।

पंडित - पूजा-पाठ करना पड़ैगा, 21 रुपय्ये और एक शाल दान करना पड़ैगा ।

जाट - पंडित जी, शाल तै घणा महंगा आवैगा, इतने पईसे कोनी ।

पंडित - चल ठीक सै, 21 रुपय्ये निकाल ।

जाट - ना पंडित जी, 21 तै कोनी ।

पंडित - चल, 11 दे दे ।

जाट - पंडित जी, इतणा ब्यौंत बी कोनी ।

पंडित - 5 रुपय्ये का ब्यौंत तै होगा ?

जाट - पंडित जी, साची बात तै या सै अक मेरा तै सवा रुपय्ये का ब्यौंत सै ।

पंडित - चल, ठीक सै, सवा रुपय्या निकाल ।

जाट (जेब में हाथ डालकर) - ओहो, पंडित जी, ईब तै गोझ खाली पड़ी सै - तड़कै दे दूंगा ।

पंडित - जब तेरै धोरै सवा रुपय्या बी कोनी, तै शनीचर के तेरी पूंछड़ पाड़ैगा ? चढ्या राहण दे उसनै !!

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